Thursday, July 31, 2008

और यह गया मुँह के अन्दर......

अब तक तो मेरी अँगुली मुँह में जाती थी पर अब तो मेरे पास ताक़त आ रही है...

पता है , मेरी और मम्मी की कुश्ती चलती रहती है आजकल, शर्ट, टी-शर्ट या मेरे बनियान को लेकर.. कैसे?.. मैं खेलते-खलते अपनी शर्ट पकड़ कर मुँह में डाल लेता हुँ.. फिर मैं खुद में ही मस्त हो जाता हूँ.. किसी की कोई ज़रुरत नहीं.. पर जैसे ही मम्मी की नज़र पड़ती है.. वह जल्दी से मेरा शर्ट ठीक करती है.. और मैं फिर से उसे मुँह में... आजकल यही लुकाछिपी चलती है..

अब तो मुझे चादर ओढ़ना भी बुरा नहीं लगता.. पता है क्यों ? क्योंकि, चादर को मुँह में डालना तो और भी आसान है.

अब तो कछुआ भी मेरी पकड़ से बाहर नहीं.. और देखो - देखो यह भी गया मुँह के अंदर..

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